सोमवार, 28 अगस्त 2017

Haii friends में आज फिर आप सब से एक  interesting topic के बारे में बात करना चाहती हुँ।  और वो टॉपिक है सुनना ,Listening हम सब बोलते तो बहुत है ना , पर सुनने का क्या ? कितनी बार हम सब  शांत दिमाग से Open -mind से सिर्फ़  सामने वाले की बात सुनते है।? वो क्या कहना चाहता है।? वो क्या समझाना चाहता है।? हमारे दिमाग मे एक बात होती है। जिसकी हमने conditioning कर रखी होती  है। की यही  बात सही है। और उसी के base पर जब सामने वाला कोई ऐसी बात करता है। जिससे हम असहमत होते है। तो हम उससे सुनना ही नहीं चाहते। हमने पहले ही अपने दिमाग मे इतना फितूर भर रखा होता है। की सामने वाले की बात तो गलत ही है  और इसलिये हम सामने वाले की बात सुनने तक की कोशिश  नहीं करते। कम से कम सामने वाले की बात सुन तो ले। फिर आप सहमत हो याअ सहमत हो, यह आपकी choice है।
     इस बात को में एक उदहारण से समझाने की कोशिश करती हुँ। हर घर मे बच्चे होते है। मान लीजिये छोटा भाई बड़ा भाई ,अब बच्चे है तो झगड़े गए भी किसी ना किसी बात पर ,  बच्चों का काम है। आपस मे झगड़ना और खेलना,अब मान लीजये दो बार कोई ऐसी बात हुई, जिसमे आपको पता चला की बडे भाई की कोई गलती है। छोटे भाई से झगड़ा करने मे.as a  parents आप क्या करेंगे ,बड़े भाई को सम्झाग्ये और कुछ cases मैं डाट देंगे। हो सकता है। बड़ा भाई समझ गया हो आपकी बात,
पर अब यदि तीसरी बार  छोटे भाई ने मजा लेने के लिये बडे भाई की झुठ मूठ शिकायत कर दी। जिसमे बड़ा भाई already दो बार गलत पाया गया है तो आप झट से यह जाने बिना की हो सकता है। छोटा भाई झूठ बोल रहा हो। बडे भाई को दोषी ठहरा देंगे। ऐसा क्यों हुआ ? क्योकि आपके दिमाग मे  एक conditioning हो रखी थी। जिसमे  दो बार बड़ा भाई पहले ही गलती कर चूका है। इस बार भी उसने ही की होगी। आप उसका पक्ष सुनेंगे ही नहीं। और पहले ही आपने सारा गुस्सा उस पर निकाल देंगे। की तुझे पहले भी समझाया है। तुझे तो कोई बात समझ ही नहीं आती। 
          पर यही यदि आप सिर्फ़ एक मिनट रुक कर गुस्सा होने से पहले ,उससे पुछ लेते कि जो तेरा छोटा भाई जो कह रहा है। वो सच है ,तूने फिर से वही गलती की ,उसको उसका पक्ष रखने देते तो शायद समझ में आ जाता की गलतीछोटे भाई की है। छोटा भाई झूठ बोल रहा है।
     आखिर ऐसे मे हुआ क्या ?जो हमारे दिमाग ने conditioning कर रखा था। उस पर ही हमने react कर दिया। अब यह सुनना सिर्फ़ बडे भाई के पक्ष में नहीं जाता ,बल्कि आप के भी पक्ष में जाता।अगर  आपएक minute रुक कर सिर्फ़ उसकी बात सुने होते तो , एक सही निर्णय के करीब पहुंचते। जो आपके लिये भी सही होता। पर हम गलती यही करते है। सुनना जरुरी नहीं समझते।
       एक बात है। जो कई सालो से आपने  अपनी सोच और अपने दिमाग के हिसाब से सही समझते है। सामने वाले ने जहां आप से असहमति की नहीं वही विद्रोह चालू।
   मेरी बस एक request है शांत दिमाग से सिर्फ़ सामने वाले को सुन ले,बिना किसी filter के ,फिर आप  सहमत हो या असहमत कौन मना कर रहा है। कई बार सुनने से  कुछ ऐसा समझ आ जाता है। जो शायद कही हमारे काम आ जाये।
     एक बहुत ही प्रसिद्व इंसान ने यह बात कही थी ,इसे ध्यान से पढ़ना। मे आप से असहमत हो सकता हुँ। पर आप को आप की बात रखने के लिये। मैं अपना सिर तक कटा सकता हु। सोचो कितनी बड़ी बात कहे रहा है।  वो व्यक्ति वो अपनी जान तक दे सकता है आप को आप की बात रखने के  लिये। इसलिये बस सुन ले। यह आपके लिये भी अच्छा है।  
                                                    धन्यवाद्
   

शुक्रवार, 10 जून 2016

Hai  friends आज फिर में अपना एक Blog लिख रही हुँ।  जिंदगी की भागम -भाग में कही ना कही हम मुस्कुराना भूल जाते है। और ऐसे में कोई इंसान आपको हँसा दे,आपके चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान ला दे, तो यकीन मानिये उससे बेहतर इंसान नहीं दुनिया में। आप किसी रोते हुऐ इंसान को हँसा दे ,यह किसी रब की इबादत से कम  है।  क्या ? जिस वक्त आप किसी के चहरे पर मुस्कान लाते है। उस वक्त आप उस ईश्वर की सीधी प्राथना करते है। आपने एक रोते ,दुखी ,या ,परेशान व्यक्ति को हँसा दिया ,मेरी नजर में तो शायद उसके लिये आपने स्वर्ग वही बना दिया। 

          तभी शायद kapil sharma show इतना Hit हुआ। क्योकि वो लोगो के चहरे पर मुस्कान लाने का काम करते है।  इसलिए लोगो ने इतना सारा प्यार दिया। मेरे दिल मे दिल से Respect  है एसे लोगो के लिये जो हसने और हँसाने का काम करते है। 

     आप कितने ही दुखी और परेशान क्यों ना हो। ?पर जिस वक्त आप अपने दुःख और परेशानियों  में मुस्करा जाते है। यकीन मानिये जिंदगी भी आपकी तकलीफों के आगे घुटने टेक देती है। तभी किसी ने कहाँ है। 

         The great people are those ,   who know ,

          How to smile ,when life forces them to cry .

इसलिये मुस्कुराइये, मुस्कुराने का कोई मौका मत छोड़िये। जिंदगी तो कोई मौका छोड़ेगी नहीं रुलाने का। पर महान लोग तब भी हस्ते है।  जब उनके पास हसने की  कोई वजह नहीं होती। क्योकि वो लोग हसने का महत्व जानते है। 

          जितना आप मुस्कुरा गए उतना वो हर शख्स मुस्कुराएगा जो आपके साथ है। इसलिये मुस्कुराइये और मुस्कुराहट  बाटते रहिये। जितनी  मुस्कराहट आप बाटेंगे उतनी ही ख़ुशी आप की जिंदगी में लौटकर वापसी आएगी। और उतना ही आप अंदर से शांत होते चले जायेंगे। 

    इसलिये हसिये , हसना, खुदा की रहमत है। हसने का काम सिर्फ़ इंसान ही कर सकता है।  कभी आपने किसी जानवर को मुस्कुराते हुए देखा है।  जानवर वो सब काम करता है। जो एक व्यक्ति करता है। पर वो मुस्कुरा नहीं सकता। यह आशीर्वाद भगवान् ने सिर्फ़ और सिर्फ मनुष्य  को दिया है। इसलिये खुश रहिये। 

           हसिये  जोर से हसिये और हसने में कोई कंजूसी मत करिये। यह मुर्दा इंसान को भी जिन्दा दिली देती है।  एक ऐसी दवा है जिसका कोई मोल नहीं है।  यह अनमोल है। यह  बहुत प्यारी है 

             कभी आपने किसी नव -जात शिशु को हस्ते देखा है। जो बिना किसी कारण हस्ता है। उसे तो यह भी समझ में नहीं आता आप उससे क्या और किस भाषा में बात कर रहे है। पर फिर भी वो अपनी प्यारी सी मुस्कान में जवाब देता है।  की मुस्कुराइये और मुस्कुराने का कोई मौका मत छोड़िये। 

      शायद वो नन्हा बच्चा जानता है की यदि वो मुस्कुराएगा तो आप भी मुस्कुरायेंगे। इसलिये शायद वो मुस्कुरा भर देता   है.उस बात अपर जो उसे मालूम भी नहीं आप क्या बोल रहे है। 

            इसलिये मुस्कुराइये और तब तक मुस्कुराइये जब तक आपके आस पास का माहौल खुश नुमा ना हो जाये। 

          हां पर ध्यान से , किसी के आँसूओ पर ली गयी हँसी बेकार है। जब आप मुस्कुरा रहे है।  और आपके सामने वाला आप को देखकर मुस्कुरा रहा है। तभी वो हसी सार्थक है। यदि आप किसी के दुःख में हस रहे है। किसी को परेशान कर के हस  रहे है। तो ऐसी हसी किसी काम की नहीं है।  जो किसी को रुला दे.हसी तो वो होनी चाहिये जो प्यार से बटती चली जाये।और  सब खुश होते चले जाये। 

                  

                               thanku 

with lots of smile













           

          























































शुक्रवार, 25 मार्च 2016

Haii friends आज फिर लिखने का सोच रही हुँ  पर क्या शायद कोई गीत, कोशिश करती हुँ। उम्मीद है इसे भी आप पसंद करें.

लिख सकु कोई  ऐसा भी गीत  ,जो  गुन -गुना  दे आप प्यार से ,
      लिख सकु कोई  ऐसा भी गीत ,
जो रूठे को मना दे प्यार से
जो बिछड़े को मिला दे, माँ से
जो प्यार से ,आँसू टपका ,दे आँख से
और लिख सकु कोई ऐसा भी  गीत  ,जो गुन गुना दे आप प्यार से
लिख सकु कोई  ऐसा भी गीत
जो कृष्ण को मीरा की  याद दिला दे ,
जो प्रीत को प्रीत से मिला दे ,
जो शब्द को ,अर्थ का समर्पण दे ,और
लिख सकु कोई ऐसा भी गीत जो गुन -गुना दे आप प्यार से।
लिख सकु माँ की प्यार भरी लोरिया
लिख सकु पापा की  प्यार भरी ,डाट
और लिख सकु भाई का वो लाड जो गुन गुना दे आप प्यार से
लिख सकु कोई ऐसा भी गीत जो गुन गुना दे आप प्यार से











मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

NAYI SOACH: DHARM BHARAT AASTHA OR ANDHVISHWAS

NAYI SOACH: DHARM BHARAT AASTHA OR ANDHVISHWAS: Ha ii friends आज फिर में अपना एक blog लिखने जा रही हुँ। और इसे लिखने से पहले काफी परेशान हुँ। दो तरह के लोग है। इस देश  में ,एक वो जो भगवा...

सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

DHARM BHARAT AASTHA OR ANDHVISHWAS

Ha ii friends आज फिर में अपना एक blog लिखने जा रही हुँ। और इसे लिखने से पहले काफी परेशान हुँ। दो तरह के लोग है। इस देश  में ,एक वो जो भगवान को मानते है। और दूसरे  वो, जो भगवान को नहीं मानते। में इस बहस में बिलकुल नहीं पड़ना चाहती कौन सही है और कौन  गलत। सबकी अपनी आस्था है। विचार है। और जिस दिन ना मानने वालो को लगेगा, भगवान है। ,तो वो मान लेंगे। और जिस दिन मानने वालो को लगेगा कि ,भगवान नहीं है , तो वो मानना छोड़ देंगे । यह समझ समय समय  पर बदलती रहगी।  क्योकि  इन सभी ने भगवान को माना है। जाना तो है। नहीं, और  जिस दिन जान लेंगे उस दिन मानना छोड़ देंगे।  क्योंकि जब हम किसी चीज को जान लेते है। तो उस चीज को मानना  छोड़ देते है। जैसे आग जला देगी ,यह आप जानते है। या मानते है ?आप जानते है के आग में जायेंगे तो जलेंगे , यह आप मानते नहीं है  तो अभी बहुत कुछ जानना बाकि है।  उस परमेश्वर के बारे में,और जिस दिन जान जायेंगे, उस दिन सभी सांप्रदायिक झगड़ो  से मुक्त भारत का निर्माण करेंगे।

          ख़ैर मेरा  प्रश्न उन लोगो से है।  जो ईश्वर भगवान, अल्लाह किसी को भी मानते है जब आप मानते है भगवान है तो क्यों इस देश में भगवान और धर्म के नाम पर झगड़े होते है। ?कौन सा भगवान हमे झगड़ा करना सिखाता है ?हिन्दू का, मुसलमान का, सिख का ,इसाई का ?कौन  सा धर्म सिखाता है। आपस में झगड़े करो?  हिंसा फैलाओ मुझे यह बता दीजिये। भगवान को मानने वालो।

        भगवान तो शांति और प्रेम का प्रतीक है न ,

          दूसरा प्रश्न भी मेरा इन्ही लोगो से है क्यों अपनी आस्था को अंधविश्वास में तब्दील करते  जा रहे है।? क्यों उम्मीद रखते है कि कोई चमत्कार होगा और सब ठीक हो जायेगा। राहत भाई का एक शेर है ना किसी राहबर ना किसी रहगुजर  से निकलेगा अपने पाँव का काँटा है ,हमी से निकलेगा।

          21 वी शताब्दी के भारत में भी तमाम news channel पर ऐसी ख़बरे देखने को मिल जाती है। जिसमे अन्धविश्वास की हद होती है और  सर शर्म से झुक जाता है।

             आज ही की एक खबर में 14 साल की नाबालिक लड़की को जल समाधि इसलिए लेनी है क्योंकि वो अपने आपको एक दैवीय अवतार समझती है। और जब प्रशासन वहाँ पहुँचता है। तो गाँव के निवासी विरोध करते है। अगर इसने जल समाधि नहीं ली तो गाँव पर संकट आ जायेगा।

                अंधविश्वास की भी चरम सीमा है। ,यह सब

            ऐसी ही एक और खबर ,जिसमे एक मुस्लिम परिवार के पिता और बेटे को इस हद तक मारा जाता है की पिता दम तोड देता है। और बेटा तीन दिन से अस्पताल में भर्ती है। सिर्फ इसलिए, क्योंकि सिर्फ एक अफ़वाह थी ,उस घर में गाय का मास  है  सिर्फ इस बात से भीड़ को भड़काया जाता है। और बिना बात एक निर्दोष इंसान को मृत्यु की गोद में सुला दिया जाता है।

      कितना आसान है। ना, इस देश में कभी भी कही भी झगडे करा देना। क्योंकि हम लोग भड़कते इसलिए तमाम लोग इसका फायदा उठाते है। कैफ़े आज़मी का एक शेर है

        जब हाथों से उम्मीदों को शीशा छूट जाता है

पल भर में ही , ख्वाबो से पीछा छूट जाता है।

     कुछ देर यदि हम और आप लड़ना भूल ,जाते है

     तो सियासी सूरमाओं का पसीना छूट जाता है

धर्म के नाम पर सांप्रदायिक झगड़े करवा ये जाते है। हिन्दू ,मुसलमान बनाकर घृणा फैलाई जाती है और सियासी रोटियाँ से की जाती है। और हम लोग सेक ने देते है। बहिष्कार नहीं करते ऐसे लोगो का जो हिन्दू मुसलमान के नाम पर झगड़े कराते है।

         कहाँ जा रहे है।  हम ,यह रूक कर हमे सोचना पड़ेगा। पहले इन्सान बन जाइए उसके बाद हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई या किसी भी धर्म के बन जाना हर धर्म मानवता की नीव पर फला फूला और बढ़ा हुआ और हम मानवता और इंसानियत को भूलकर सब कुछ सिख गए।

       अंधविश्वासने भी हद कर रखी है इस देश में ,हर चीज में अंधविश्वास  ,बिना मतलब के वहम् है लोगो के ,हम लोग आस्था और अन्धविश्वास में अंतर करना भूल गए है। आप भगवान को याद करने के लिए मन्दिर जाते है। यहाँ तक तो सही है। पर ऐसे विचार मन में लाना , यदि आज में मंदिर नहीं गया तो मेरे साथ कुछ गलत हो जायेगा। यह कहा तक सही है ?आज घर में पूजा पाठ नहीं की इसलिए दिन अच्छा नहीं जायेगा। ऐसे कही तरह के लोगो के विश्वास होते है। मन में

                 भगवान को सच -मुच मैं क्या इन बातों से फर्क पढ़ता है। यदि आज सुबह मैने उन्हें जल नहीं चढ़ा या तो वो मेरे साथ बुरा करेंगे। यानि की भगवान भी  बदला लेंगे, मुझसे देख तू ने मेरी पूजा नहीं की ,इसलिए अब में तेरे साथ ऐसा करूँगा। भगवान ,भगवान किस बात का रहेगा ,यदि वो भी इंसानों की तरह सोचैगा।

            भगवान है तो समझे गा की बेचा रे की कोई मजबूरी रही होगी ,इसलिए आज नहीं आया , रोज तो आता है।  कल आ जायेगा।

            भगवान तो सिर्फ और सिर्फ प्रेम करता है। क्या,  कभी कोई  भगवान की बनी चीज फर्क करती है ? आप कोई भी भगवान की बनी चीज ली जिये ,चाहे वो हवा हो ,सूरज हो , पानी हो ,क्या कभी वो फर्क करते है।  यह आदमी अच्छा है इसलिए इसे तो सूरज की रोशनी मिलेगी ,यह आदमी बुरा है। इसलिए इसे सूरज की रोशनी नहीं मिलेगी।    क्या कभी कोई पेड़ फल देने से पहले सोचता है। की वो हिन्दू को देगा मुसलमान को नहीं या मुसलमान को देगा हिन्दुओ को नहीं। वो तो कोई भेद - भाव नहीं करता ,भगवान सिर्फ और सिर्फ  प्यार करता है बिना किसी भेद  भाव के ,चाहे वो हिन्दू का भगवान हो या मुस्लिमों का अल्लाह , या सिक्खो  के गुरु ग्रन्थ हो या ईसाइयो के जिसस , फिर हम सब भगवान को मानने वाले हिंसक कब से हो गए ?,हमे भी तो प्यार करना चाहिए जैसे वो सब को करता है , उसी के तो अंश है। हम, और उसी के  नक्शे कदम पर चलना चाहिए हमे।

                 एक और छोटी सी कहानी है। एक बार एक महिला जिज्ञासु ने राम कृष्ण परमहँस जी से पूछा ,क्या पंडित लोग ग्रहों की पूजा करके उसकी प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकते है। परमहँस जी ने कहाँ ग्रह नक्षत्र इतने क्षुद्र नहीं है। जो किसी पर अकारण उलटे सीधे होते रहे ,और ना उनकी प्रसन्ता ऐसी है। जो छूट -पुट कर्मकाण्डों से बदलती रहे। और पण्डितों के पास उनकी एजेंसी भी नहीं ,की उन्हें दक्षिणां देने पर ग्रहों को जैसा चाहे नाच -नचाया जा सके।

             हम अपने अन्धविश्वास पर इस हद तक विश्वास कर लेते है। की कुछ सोच समझने तक को तैयार नहीं।

             तो बस में आप यही कहना चाहती हुँ। पूजा की जिये पाठ की जिये भक्ति में शक्ति है ,मीरा ने भी की थी।  पर किसी अन्धविश्वास में मत फंसिए। यह सब आपकी मन की शक्ति के लिए होना चाहिए। जो आपको हर दुःख और दर्द से लड़ने की हिम्मत दे।

     और साथ -साथ जो लोग पूजा पाठ  नहीं   करते है। किसी भी वजह से इसका मतलब यह नहीं की वो नास्तिक है। और भगवान को नहीं मानते। हो सकता है। उनकी आस्था आप से भी ज्यादा हो भगवान पर पर वो लोग शायद जरूरी नहीं समझते की पूजा पाठ जरूरी है। हो सकता है उनके लिए मानव सेवा ही पूजा हो या फिर अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से पूर्ण करना ही पूजा पाठ हो तो कभी किसी पर भी उसकी पूजा पाठ को लेकर सवाल उठाना गलत है। हर किसी की अपनी आस्था और अपनी priority है। जो करते है वो भी सही है। और जो नहीं करते वो भी सही है। और शायद जो बिलकुल नहीं मानते है वो भी सही है क्यो कि इसके लिए उनके पास अपने तर्क है।

                                                धन्यवाद 

              

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

HINDI DIWAS PAR HINDI ME KHAS

नमस्कार दोस्तों आज फिर आप सब से कुछ बात चित करने का मन हो आया फिर कोशिश कर रही हुँ। कुछ अच्छा लिखने कि। यह ब्लॉग हिंदी दिवस के दिन लिख रही हुं और चाहती हुं कि आज पूर्ण ब्लॉग हिंदी में ही लिखुँ ,पर शायद, अभी मेरे लिए संभव ना हो सके, पर पूरी कोशिश करुँगी , जैसा आपने देखा होगा आज हेलो फ्रेंड्स की जगह नमस्कार दोस्तों लिखा। में अपने ब्लॉग में अँग्रेजी भाषा का इस्तेमाल इसलिए करती हुं की वो आम बोल चाल की भाषा हो जाये। जिससे आप और में आसानी से जुड़ सके।

              आज में आप सब से हिंदी के बारे में बात करना चाहती हुँ। जो हमारी मातृ भाषा है जिसके साथ हम जन्म लेते है। जब कोई नव -जात शिशु जन्म लेता है और जब वो बोलना शुरू करता है। तो अपनी मातृ भाषा में तमाम शब्द बोलना शुरू करता है। जैसे माँ , पापा आदि। क्योंकि हिंदी भाषा उसके सबसे अधिक करीब होती है। फिर आखिर कुछ सालों में ऐसा क्या हो जाता है ?कि हमे उसे, अन्य भाषाएँ पढ़ाने में इतने मशगूल कर देते है। की उसे हिंदी पढ़ना लिखना तक मुश्किल लगने लगता है। उस बच्चे को हिंदी में सौ तक गिनती तक नहीं आती। क्योंकि ,उसको हमने कभी सिखाई ही नहीं होती। अन्य भाषाएँ पढ़ाने में इतना मशगूल कर देते है।की उसे कभी अपनी मातृ भाषा का महत्व ही नहीं समझाते। ना समझाते है। ना समझते है अपनी मातृ भाषा का महत्व।

                सभी भाषाएँ अच्छी है। सबका बोलना पढ़ना समझना चाहिए। हर भाषा का अपना महत्व होता है। अपना अस्तित्व है। पर यह कब सही हो गया ?कि जब आप किसी पंच सितारा होटल में प्रवेश करे तो अँग्रेजी बोलने वाले युवक को तो पढ़ा लिखा, और हिंदी में बात करने वाले को अन पढ़ समझे। क्योंकि वो अपनी मातृ भाषा में आपसे सवांद कर रहा है।

                       यह तो गलत है।

                     हमारी भाषा हिंदी ने तो हमे मीरा  ,तुलसी, सुर  ,कबीर  ,जैसे अनेक महानतम कवि दिए।  और तमाम हिंदी साहित्यकार ,जैसे मुंशी प्रेम चंद  ,मैथिली शरण गुप्त ,हजारी प्रसाद द्विवेदी , सूर्य कांत त्रिपाठी निराला ,हरि वश राय बच्चन जी , जैसे तमाम साहित्यकार और कवि और दिए जिसने हिंदी को गौरवान्वित किया। और इस देश की विंडम्बना देखिये, अपनी भाषा का भी हमे दिन मानना पढ़ता है। जिस भाषा के साथ हम उठते है खाते है पीते है सोते है और अपना पूरा दिन व्यतीत करते है।हिंदी तो हमारे दिल में धड़कती है। पर उसी भाषा में जब पत्र लिखने में भी संकोच करते है तो दुःख होता है। अमिताभ बच्चन जैसे महान कलाकार ने भी जब अपने k.b.c जैसे कार्यक्रम की होस्टिंग की तो संपूर्ण रूप से हिंदी में,जिसे पूरे भारत ने सराहा ,हिंदी भाषा का अपना एक सौंदर्य है अपना वर्चस्व है ,अपना एक कौशल है ,और अपनी भाषा के लिए जरा सी भी हीन भावना रखना गलत है। और अब  तो हिंदी गूगल तक पहुंच गयी। सव सौ करोड़ देश वासियो की भाषा है हिंदी। 

       मुझे आश्चर्य होता है यह देखकर ,जब आज की युवा पीढ़ी ,अपने दिल की बात करने जाती है। तो अंग्रेजी भाषा की चार लाइन रट कर जाती है। की सामने वाले पर  प्रभाव अच्छा पड़ेगा। क्या है यह? आप अपने दिल की बात करने जा रहे है तो उस भाषा में बात करिये जो आपके दिल के करीब हो। तभी तो संवाद  अच्छा होगा।

                     क्या आप अपनी भाषा को इस काबिल भी नहीं समझते की उस भाषा में आप अपनी दिल की बात कर सके। ?

          हिंदी अपने आप में एक समृद्ध भाषा है। हमारे पास एक ही चीज को कहने के लिए  अनेक शब्द है जैसे भगवान। अल्लाह ,परमेश्वर ,ख़ुदा , ईश्वर,  एक  भगवान को याद करने के लिए हमारे पास इतनी समृद्ध सम्पदा  है  उसी  तरह जल और पानी, जब हम पिने के लिए मांगते है तो पानी पर जब पूजा के लिए मांगते है तो जल  हमारे पास उसके हर स्वरूप के लिए शब्द है। हमारे पास इतनी समृद्ध  सम्पदा है। हीरे है जवाहरात है। तो पत्थर के पीछे क्यों भागे। दो सौ करोड़ लोगो के बोल -चाल की भाषा है हिंदी बहुत ही सामर्थ्य वान इतहास है हिंदी भाषा का अनेको कवि यों और साहित्य कारों ने हिंदी को गौरवान्वित किया है और उसके बाद भी यदि हमने अपनी भाषा माँ हिंदी को सम्मान नहीं दिया। तो यह उस भाषा और माँ के प्रति अन्याय है। जो इतनी विकसित है।

            और अंत में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की हिंदी पर कविता

                      लगा रही प्रेम हिंदी में ,पढ़ु हिंदी लिखू हिंदी ,चाल चलन हिंदी

                ओढ़ना पहनना और खाना हिंदी


                       इन्ही पंक्तियों के साथ

                                       जय हिन्द

                                                            जय भारत



     











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मंगलवार, 15 सितंबर 2015

Shiksha OR Hunar saath saath

Haii friends आज में फिर अपना एक blog लिखने जा रही हुँ जो शिक्षा प्राणली  के बारे में है। हालांकि यह विचार मेरे नहीं है। deputy C.M Manish sisodia ji के है। जिनका मैने ,आज एक lacture सुना जिससे में बहुत प्रभावित हुई। उसी speech के कुछ अंश में आप सब से शेयर करना चाहती हुँ। 


        मेरा बचपन में एक ख्वाब था। की मे शिक्षक बनु। पर बचपन की नादानी की वजह से में शिक्षक नहीं बनी ।उस समय यह सोचा ही नहीं में क्या बनना चाहती हु।? आज सात साल की job के बाद समझ में आता है। की शायद कुछ खोया है। जो बनना चाहती थी।  शायद वो बनती तो आज किसी और ऊचाइयों पर होती। काम बोझ नहीं लगता। मन लगता उसे करने में। खेर कोई बात नहीं बहुत अच्छी job है मेरी, सुखी हु comfort level में हुँ। और सब अच्छा है अपनी बात लोगो तक पहुँचाने के लिए blog लिखना शुरू कर दिया है। मैने 


          पर आज  ,जब पीछे मुड़कर देखती या सोंचती हुँ की यह बात उस वकत,  मेरी समझ मै क्यों नहीं आई ? क्यों मेरे पास इतना समय अपने लिए ही नहीं था। कि पाँच मिनट शान्ति से बैठ कर यह सोचती की जो मुझे बनना है वो क्यों बनना है? और जो मुझे करना है वो क्यों करना है। ?झट -पट 12 की जिस field में number आया उस course में  admission ले  लिया  और फिर job मिल गयी। कभी यह सोचा ही नहीं कि क्या सिर्फ जिन्दगी में पैसे कमाने की मशीन बनना है?। या कुछ ऐसा करना है जिसमे अपनी संतुष्टि हो। 

        इसके कारण खोजने शुरू किये मैने ,आखिर क्यों उस वकत  यह सब मेरी समझ में                                          नहीं आया?जो शायद  sir की बात सुनने पर कुछ समझ में आया है। 


   पहला कारण शायद इतना syllabus की उसे पढ़ने  रटने और number लाने की दौड़ में। कि कही class में किसी से पीछे ना रहे जाये ,कभी यह सोचा ही नहीं की यह सब पढ़ना क्यों है। और यह सब पढ़कर बनना क्या है। बस यही रहा, कि किसी तरह पाठ्यक्रम समझो,परिक्षा उत्तरिीण करो। और अगली कक्षा में प्रवेश कर जाओ।  इतना  space  ही नहीं मिला की इससे बहार जाकर भी कुछ सोचा जा सके। एक assets की तरह खुद को तैयार करना था। जो नौकरी लग सके ,और कमा सकें।

             उस बच्चे का अपना talent क्याहै उसका शोाक क्या है। वो जिंदगी मै क्या करना चाहता है यह कभी उस बच्चे से ना तो किसी teacher ने पुछा,ना किसी  parents ने ,और न उसने खुद अपने आप से ,बस किसी तरह नौकरी लगे और पैसा कमाना शुरू कर दे , इससे बहार का thought process ना तो वो बच्चा कभी सोच पाया ,और ना वो माँ -बाप और ना  teacher जो चाहते तो बच्चे का भला ही  थे। पर शायद कर नहीं पाये। 

                                                                    क्योकि यदि वो बच्चा , वो करता, जो वो करना चाहता था । तो शायद वो ज्यादा अच्छी तरह से कर पाता । ज्यादा लगन से कर पाता। और शायद इससे भी कई ज्यादा उचाईयो को छु पाता 

       मेरा आज हर माता -पिता से यह हाथ जोड कर निवेदन है। की बच्चों को वो बनने दे जो वो बनना चाहते है अपनी फालतु की अपेक्षाएं उस बच्चे पर मत थोपिये। अगर वो सच में कोई skill talented है तो उसे वो करने दीजिये। 

       अपने बच्चे को education दीजिये पर एक अच्छा इंसान बनने के लिए। ताकि वो बच्चा बड़े होकर कोई गलत काम ना करे। उसमे शिक्षा के द्वारा इतनी समझ उत्पन्न हो कि वो सही और गलत का फर्क समझ सके। 


        हमारी शिक्षा प्राणली को इतना लचीला होना पढ़ेगा कि वो हुनर की कदर कर सके। वो बच्चे को वो बनने में मदद कर सके जो वो बनना चाहता है। फिर चाहे वो musician हो। dancer हो writer हो या teacher या कुछ भी। ताकि वो बच्चा समय रहते अपनी प्रतिभा पहचान सके और  उसे विकसित कर सके। और उसी के बल -बुते अपनी रोजी रोटी कमा सके।इससे वो बच्चा भी खुश रहेगा। और देश विकास कर सकेगा। 

            हमारे system को यह जिम्मेदारी हर हाल में लेनी होगी। कि  वो बच्चे को वो बनने में मदद करे जो वो बच्चा बनना चाहता हो। उसके अपने अस्तित्व और पहचान की कदर हो। 

    हम सब को मिलकर शिक्षा कि दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होगे। जिससे जब कोई बच्चा अपनी scholing कर के निकले तो  ,वो एक काबिल इंसान हो,   उसे मालूम हो कि उसे अपनी आगे कि जिंदगी कैसे काटनी है। ना  की एक ऐसा व्यक्ति जो इतना असमंजस में हो ,की यदि उसे कही admission न मिले तो वो कोई गलत कदम उठा ले। कही admission मिले, चाहे ना मिले, वो अपनी क़ाबलियत के बल पर कुछ कर सके। 


              शिक्षा के स्वरुप को एक सीमित दायरे से बहार निकालकर एक व्यापक जिम्मेदारी लेनी होगी। तभी इस देश और समाज का कल्याण होगा। और भारत सच में उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा। इसी उम्मीद के साथ। 

                  

                                           जय हिन्द 

                                                                   जय भारत